एक रोज़ तमन्ना थी.......
आसमां छू लेने की।
वो तमन्ना आज भी है
की छू लूँ मैं आसमां
पर लगने लगा है .........
लाके कोई रख दे
उसे मेरे सिरहाने।
क्या यह हार नही ?
हाँ यह हार है, किंतु जीवन की यही परिणति है........... और शायद नियति भी।
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क्या यह हार नही ?
हाँ यह हार है, किंतु जीवन की यही परिणति है........... और शायद नियति भी।
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