सृजन
Sunday, July 18, 2010
एक दौर था वो
बस अपने हुए हम,
आज सबके हरदम
बस अपने नहीं हम।
वक्त दिन का है उतना ही
अपने लिए कम।
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment