इक रोज़ तपाया था
नर्म नेह आंच में
घट दरक गया है
झुलस ताप में.
न शिकवा न शिकायत पर
प्रश्न हैं कईं
क्यूँ दीखते हैं भरे
वृक्ष खोखले कईं?
कह कर करें भी क्या?
क्या सुनेंगे वो ?
घिर गए हैं जो
अपने रुआब में?
नर्म नेह आंच में
घट दरक गया है
झुलस ताप में.
न शिकवा न शिकायत पर
प्रश्न हैं कईं
क्यूँ दीखते हैं भरे
वृक्ष खोखले कईं?
कह कर करें भी क्या?
क्या सुनेंगे वो ?
घिर गए हैं जो
अपने रुआब में?
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