एक रोज़ तमन्ना थी.......
आसमां छू लेने की।
वो तमन्ना आज भी है
की छू लूँ मैं आसमां
पर लगने लगा है .........
लाके कोई रख दे
उसे मेरे सिरहाने।
इल्तिजा मौत तुझसे है इतनी,
देके दस्तक मेरे दर पे आना।
जिंदगी ये गुज़ारिश है तुझसे,
सुनके दस्तक वहाँ ले जाना,
कोई साया भी हो ना जहाँ पर,
फिर मिलकर मुझे तुम सुलाना।
न डाले कफन कोई ऐसा...
पीछे जिसका सुनाएं वो ताना,
कौन आँसू बहाएगा मुझपर,
है खुदगर्ज़ ये तो जमाना
भीड़ में से अँगुली पकड़ कर
तन्हाइयों में ले जाना
और गोद में रखकर मेरा सर,
नींद अंतिम मुझे तुम सुलाना।
आज सफलता देख मेरी
जब हर्षाते हो
मन में फिर भी
यह रहता है.....
अब भी.....क्या अब भी
पुत्र ही चाहते हो
आशीष रहा
मुझ पर जो सदा
जो प्रेम तुम्हारा
बना रहा
हर पथ पर
संबल तुमने दिया
वह याद सभी कुछ है
पर भूले नहीं
कभी फिर भी......
आँख के तेरी
वे आँसू।