आने वाले वर्ष,
तुम्हारे स्वागत में
कुछ करना होगा।
छोड़ चीथड़े द्वेषभाव के,
नव परिधानों में
सजना होगा
कुछ बंधन काटने होंगे,
स्वछंद, नील गगन में,
इक पंछी सम उड़ना होगा
आशाहीन दिशाभ्रमित जो,
हाथ पकड़ कर, राह दिखा कर
उनको गले लगाना होगा।
जग त्रास से बेबस जो,
सोये हुए स्वप्न हृदय में
उनको पुनः जगाना होगा
उँगलियाँ बहुत दिखा चुके,
क्या लेना कौन करे है क्या,
बस अपना आप परखना होगा।
घृणा बैर सब काट, फेंक कर
आशा की उर्वर भूमि में
स्नेह बिरवा इक रोपना होगा।