Saturday, September 27, 2014

प्रेम

1.
होंठों पर थिरकता
तरल श्वास है
शब्दों से परे
अहसास है
जीवन के मौन
को करता स्पंदित
प्रेम...
थोड़ा और जीने की
प्यास है।
2.
वीणा तंत्री सी देह
शिथिल होने पर भी
जो झंकार सके
उदास मन की वादी
को गुंजार सके
मौन के शब्दों को पढ़
रचे नई भाषा
पके जीवन में
ला रखे नई आशा।

3
एक स्पर्श से 
हृदय में उतर आता है बसंत
थिर जल को 
हौले से हिला जाता है
गूंज जाती है दिशाओं में 
मधुर सरगम
जीवित हो मन 
मयूर सा, थिरक जाता है।