Tuesday, January 19, 2016


थाली लोटा
गुदड़ी कथरी
धीमे धीमे
बंजारे ने
जोड़ी यादें
भर ली गठरी।
चलता रहा
राह पर अपनी
कुछ  छूटे
कुछ साथ चले
जंगल जंगल
नगरी नगरी।
छूट गया
क्या क्या रस्ते में
दिन बंजारे
मीठी रातें
गुड़ गुड़ हुक्का
मीठी लोरी।
ज्ञानोपदेश
प्यार की बातें
सपनों ने कभी
भरी उड़ानें
अश्रु बहे कभी
चोरी चोरी।
भोर हुई
जब भान हुआ
जग मिथ्या
मोह तजा
कल्याण हुआ,
बंधी ईश संग
प्रेम की डोरी।
भावना सक्सैना

Wednesday, January 6, 2016

बरसों पहले छूटा था
एक चांद सिरहाने अम्मा के
हर रात बीन कर चाँद के टुकड़े
उनको जोड़ा करती हूँ
मैं चाँद को पूरा करती हूँ।
ममता के आँचल में लिपटा
करुणा से था सिक्त चाँद वो
प्यासे पर शबनम ढुलकाता
शीतलता का अमृत घट
वो अक्स मैं ढूँढा करती हूँ।
अम्मा जब से आँचल छूटा
इस मेले में मैं खो सी गयी हूँ
दावानल सी दहके दुनिया
शोर कोलाहल इतना है
अब चाँद धधकता रहता है।
भीगी पलकों से बीन के मोती
पिरो याद की लड़ में उनको
तुमको अर्पण करती हूँ
स्मृतियों को सींचा करती हूँ
जब चाँद को ढूँढा करती हूँ।