बरसों पहले छूटा था
एक चांद सिरहाने अम्मा के
हर रात बीन कर चाँद के टुकड़े
उनको जोड़ा करती हूँ
मैं चाँद को पूरा करती हूँ।
एक चांद सिरहाने अम्मा के
हर रात बीन कर चाँद के टुकड़े
उनको जोड़ा करती हूँ
मैं चाँद को पूरा करती हूँ।
ममता के आँचल में लिपटा
करुणा से था सिक्त चाँद वो
प्यासे पर शबनम ढुलकाता
शीतलता का अमृत घट
वो अक्स मैं ढूँढा करती हूँ।
करुणा से था सिक्त चाँद वो
प्यासे पर शबनम ढुलकाता
शीतलता का अमृत घट
वो अक्स मैं ढूँढा करती हूँ।
अम्मा जब से आँचल छूटा
इस मेले में मैं खो सी गयी हूँ
दावानल सी दहके दुनिया
शोर कोलाहल इतना है
अब चाँद धधकता रहता है।
इस मेले में मैं खो सी गयी हूँ
दावानल सी दहके दुनिया
शोर कोलाहल इतना है
अब चाँद धधकता रहता है।
भीगी पलकों से बीन के मोती
पिरो याद की लड़ में उनको
तुमको अर्पण करती हूँ
स्मृतियों को सींचा करती हूँ
जब चाँद को ढूँढा करती हूँ।
पिरो याद की लड़ में उनको
तुमको अर्पण करती हूँ
स्मृतियों को सींचा करती हूँ
जब चाँद को ढूँढा करती हूँ।
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