Wednesday, January 6, 2016

बरसों पहले छूटा था
एक चांद सिरहाने अम्मा के
हर रात बीन कर चाँद के टुकड़े
उनको जोड़ा करती हूँ
मैं चाँद को पूरा करती हूँ।
ममता के आँचल में लिपटा
करुणा से था सिक्त चाँद वो
प्यासे पर शबनम ढुलकाता
शीतलता का अमृत घट
वो अक्स मैं ढूँढा करती हूँ।
अम्मा जब से आँचल छूटा
इस मेले में मैं खो सी गयी हूँ
दावानल सी दहके दुनिया
शोर कोलाहल इतना है
अब चाँद धधकता रहता है।
भीगी पलकों से बीन के मोती
पिरो याद की लड़ में उनको
तुमको अर्पण करती हूँ
स्मृतियों को सींचा करती हूँ
जब चाँद को ढूँढा करती हूँ।

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