मोह नहीं है
फिर भी छूटती नहीं
पुरानी चीज़ें।
चांदी की एक बाली
जो अम्मा ने बनवाई थी
कर्णछेदन पर
हल्दी तेल उसके
धुल गए कब से
लेकिन सिमटी है
उसमें एक तरल मुस्कान
पहला साहस
दर्द में न रोने का।
दराज़ के कागजों में छिपा
सागर तट का धुंधला सा चित्र
जिसमें माता पिता
के संग मुस्कुराते चेहरे
अतीत को ज़िंदा रखे हैं;
ज़रूरी है वह
दिल के सागर में
छिपी यादों की तरह।
पाठशाला का चित्र
जिसमें जड़े चेहरे
बदल गए बरसों पहले
पर उसमेँ मैं खुद को
अभी भी पहचान लेती हूँ
और उसे देख नए हो जाते हैं
कितने ही संकल्प
जो अभी पूरे नहीं हुए।
वो किस्से कहानियाँ
जो कहीं लिखे नहीं
पर मोती से टंके हैं
दिल के दामन पर।
एक नामालूम सा बूंदा
जो अनमोल है
कि उसे ले आया था
आठ साल का एक बालक
पिकनिक के लिए दिए
मामूली से खर्चे से
अपनी माँ के लिए
कहता है कहानी
एक बालक के बड़े होने की।
बालिश्त भर का एक स्वेटर
जिसमें माँ की उँगलियों ने
बुने थे स्नेह के तार
अभी तक उसकी
नरमी में महकता है प्यार;
कुछ खिलौने
जिनसे कोई खेलता नहीं
लेकिन बीता कल
मुस्कुराता है उनमें।
एक ख़त पुराना
नए रिश्तों की
जिसने नींव धरी
जिसके विश्वास में
महकता है आज
और धो देता है
यदा कदा उपजी काई
जिस पर फिसल के
टूट जाते हैं रिश्ते।
इन सब में
और ऐसी कईं और
कोनों में सहेजी हुई
निशानियों में है मौजूद
मेरा ज़रा ज़रा सा वजूद
इनसे जुदा जो होने नहीँ देता
इनके होने से मेरा होना है।
लेकर साथ तो
कुछ भी है जाना नहीं
ज़िंदा रहने को
पर ये जरूरी हैँ
सांसों की तरह।
पुरानी चीज़ें।
चांदी की एक बाली
जो अम्मा ने बनवाई थी
कर्णछेदन पर
हल्दी तेल उसके
धुल गए कब से
लेकिन सिमटी है
उसमें एक तरल मुस्कान
पहला साहस
दर्द में न रोने का।
दराज़ के कागजों में छिपा
सागर तट का धुंधला सा चित्र
जिसमें माता पिता
के संग मुस्कुराते चेहरे
अतीत को ज़िंदा रखे हैं;
ज़रूरी है वह
दिल के सागर में
छिपी यादों की तरह।
पाठशाला का चित्र
जिसमें जड़े चेहरे
बदल गए बरसों पहले
पर उसमेँ मैं खुद को
अभी भी पहचान लेती हूँ
और उसे देख नए हो जाते हैं
कितने ही संकल्प
जो अभी पूरे नहीं हुए।
वो किस्से कहानियाँ
जो कहीं लिखे नहीं
पर मोती से टंके हैं
दिल के दामन पर।
एक नामालूम सा बूंदा
जो अनमोल है
कि उसे ले आया था
आठ साल का एक बालक
पिकनिक के लिए दिए
मामूली से खर्चे से
अपनी माँ के लिए
कहता है कहानी
एक बालक के बड़े होने की।
बालिश्त भर का एक स्वेटर
जिसमें माँ की उँगलियों ने
बुने थे स्नेह के तार
अभी तक उसकी
नरमी में महकता है प्यार;
कुछ खिलौने
जिनसे कोई खेलता नहीं
लेकिन बीता कल
मुस्कुराता है उनमें।
एक ख़त पुराना
नए रिश्तों की
जिसने नींव धरी
जिसके विश्वास में
महकता है आज
और धो देता है
यदा कदा उपजी काई
जिस पर फिसल के
टूट जाते हैं रिश्ते।
इन सब में
और ऐसी कईं और
कोनों में सहेजी हुई
निशानियों में है मौजूद
मेरा ज़रा ज़रा सा वजूद
इनसे जुदा जो होने नहीँ देता
इनके होने से मेरा होना है।
लेकर साथ तो
कुछ भी है जाना नहीं
ज़िंदा रहने को
पर ये जरूरी हैँ
सांसों की तरह।
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