Thursday, October 29, 2020

आँगन निराला

 कुछ धुंधली तस्वीरें हैं

कुछ यादें बड़ी पुरानी हैं

अम्मा के फैले आँगन की

प्यारी सी ये कहानी है।


पक्की ईंटों से बिछा हुआ

वो आँगन बड़ा निराला था

द्वार सदा था खुला हुआ

हर मुंह को वहाँ निवाला था


नीम तले पुरवइया में

कुछ पीढों और खटोलों में 

सुख-दुख साझा  हो जाते थे 

कुछ झूलों और झिंगोलों में।


मन की बातें, चुभती फांसें

सब निकल, वहां मिलती साँसें

सब दर्द विकल बह जाते थे

भोली निश्छल मुस्कानों में


उस घर में जो कोई आता था

हर जन से प्रेम का नाता था

रिश्तों के गहरे  सागर में

मन तीर्थ से गोते लगाता था।


जब जब सोचा उसको, पाया

वो और कहीं की बातें हैं

अब वैसे आँगन नहीं कहीं

बस मतलब हैं और घातें हैं।


अब यादें हैं और कहानी है

कि गुड़िया हुई सयानी है

यह जीवन कितना क्षण भंगुर

मानो बहता हुआ पानी है।