मन्नत के धागों में कब बंधती हैं तकदीरें
रूह की स्याही से रचती हैं ये बरसों बरस
रूह जिस रोज बदलती है चोला बदन का
मिटती है लकीरें कोई गहरा जाती हैं बस।
भावना सक्सैना
रूह की स्याही से रचती हैं ये बरसों बरस
रूह जिस रोज बदलती है चोला बदन का
मिटती है लकीरें कोई गहरा जाती हैं बस।
भावना सक्सैना