Friday, October 12, 2018

#metoo

अरे ओ!
खौफज़दा हो क्यों
बेहद से भी ज्यादा
बहते हुए दर्द के दरिया से?
हाँ उस दरिया में सड़न है!
कि ठहरा हुआ है
वो बरसों से।
हर साँस में रमकर
रिसता रहा सदियों
नस-नस में बहा है…
भीतर-भीतर।
ना हँसोंं, ना झिड़को...
बहने दो उसे
हर रोम-कूप से…
टपकने दो बूंद-बूंद,
समेट लो अंक में
इस तरह, कि अब
दर्द को नींद आए।
तुम खौफ़ में हो, क्योंकि
तुम जोड़ रहे हो इसे
आज  के सम्मान से,
सोचो उसे जो आज तक
नज़र  मिला नहीं पाई
खुद की खुद से
झुक गई है जो लादे हुए
उस एक पल के जनाज़े को
समेटती रही है अश्कों को
जो मन के दरिया में
इससे पहले वो जुटा पाए
अपने बिखरे हुए किरचे
क्यों न खुद ही तुम
खंगालो अपने मन को
अपने घिनौने
लिजलिजेपन को
और जाकर कह दो
अपराधी हूँ उस पल का
हाथ जोड़े खड़ा हूँ

कह पाओगे क्या तुम? - मी-टू!