बड़ी हुई है नाइंसाफी
राजधानी का रुख करते हैं,
सत्ता से हैं बहुत शिकायत
सड़कें जाम चलो करते हैं।
हों बीमार, या शोकाकुल हों
हम तो रस्ता रोकेंगे जी
कहीं कोई फंस जाए हमे क्या
अपनी जिद पर हम डटते हैं।
सत्ता ने ठानी सुधार की
वह तो अपने लिए नहीं जी
वंचित का चूल्हा बुझ जाए
हम अपने कोष हरे रखते हैं।
सब्सिडी भी लेंगे हम तो
टैक्स रुपए का नहीं चुकाएं
कर देने वाले, दे ही देंगे
तोड़-फोड़ हम तो करते हैं।
सरकारों से बदला लेने
देश हिला कर हम रख देंगे
हम स्वतन्त्र मन की करने को
आम जनों को दिक करते हैं।
हमको बल ओछे लक्ष्यों का
कुर्सी के लालच, पक्ष हमारे
अपनी बुद्धि गिरवी रखकर
हम कठपुतली से हिलते हैं।
बड़ी हुई है नाइंसाफी
राजधानी का रुख करते हैं,
सत्ता से हैं बहुत शिकायत
सड़कें जाम चलो करते हैं।
भावना सक्सैना