तमन्नाओं के जंगल
सुर्ख होते जा रहे हैं
कत्ल हर रोज़ होती
एक नई ख्वाहिश यहाँ पर
लहू रिसता जिगर से बूंद बनकर
मगर दरिया बहे ही जा रहे हैं।
सुर्ख होते जा रहे हैं
कत्ल हर रोज़ होती
एक नई ख्वाहिश यहाँ पर
लहू रिसता जिगर से बूंद बनकर
मगर दरिया बहे ही जा रहे हैं।
ये मायावी शहर,
कितनी है बारिश
हो मौसम कोई,
यहां हर रोज़ बरसे
बचाया है बहुत छींटों से फिर भी
ये दामन बस भिगोए जा रहे हैं।
कितनी है बारिश
हो मौसम कोई,
यहां हर रोज़ बरसे
बचाया है बहुत छींटों से फिर भी
ये दामन बस भिगोए जा रहे हैं।
बहुत चाहा कि तुमसे दूर हो लें
मगर बस में नहीं उद्दाम लहरें
जमाए पांव थे
कस कर बहुत ही
किनारे फिर भी देखो
छूटते ही जा रहे हैं।
मगर बस में नहीं उद्दाम लहरें
जमाए पांव थे
कस कर बहुत ही
किनारे फिर भी देखो
छूटते ही जा रहे हैं।
कभी इनसे, क़भी उनसे
नींव शिकवों की गहरी है
रहा मन में गिला हरदम
मगर एक बात ये भी तो
सोचकर कोई कुछ करता कहाँ है
हादसे बस हुए ही जा रहे हैं।
नींव शिकवों की गहरी है
रहा मन में गिला हरदम
मगर एक बात ये भी तो
सोचकर कोई कुछ करता कहाँ है
हादसे बस हुए ही जा रहे हैं।
तमन्नाओं के जंगल
सुर्ख होते जा रहे हैं...
सुर्ख होते जा रहे हैं...