थाली लोटा
गुदड़ी कथरी
धीमे धीमे
बंजारे ने
जोड़ी यादें
भर ली गठरी।
चलता रहा
राह पर अपनी
कुछ छूटे
कुछ साथ चले
जंगल जंगल
नगरी नगरी।
छूट गया
क्या क्या रस्ते में
दिन बंजारे
मीठी रातें
गुड़ गुड़ हुक्का
मीठी लोरी।
ज्ञानोपदेश
प्यार की बातें
सपनों ने कभी
भरी उड़ानें
अश्रु बहे कभी
चोरी चोरी।
भोर हुई
जब भान हुआ
जग मिथ्या
मोह तजा
कल्याण हुआ,
बंधी ईश संग
प्रेम की डोरी।
भावना सक्सैना