अश्रु से धुंधली है स्याही
शब्द सारे खो गए हैं
उस ज्वाल में होकर हवि
कुछ वीर जब से सो गए हैं।
है गया तन पर अमिट
गरिमा लिए सौ आसमान सी
शौर्य की गाथा बने हैं
चिर अमर वो हो गए हैं।
गांव घर सूने हुए हैं
वेदना बस झर रही है
दे गहन पीड़ा बहुत
पर भाल ऊंचे हो गए हैं।
आखिरी दीदार भी
जो कर न पाई वीर का
उस बिलखती माँ का दामन
पूछता, ताबूत खाली क्यों गए हैं।
जन्म लेकर जो अभी
आया है माँ की गोद में
पूछता है चढ़ना था जिसपर मुझे
वो उसे कांधे पे लेकर क्यों गए हैं।
शब्द सारे खो गए हैं
उस ज्वाल में होकर हवि
कुछ वीर जब से सो गए हैं।
है गया तन पर अमिट
गरिमा लिए सौ आसमान सी
शौर्य की गाथा बने हैं
चिर अमर वो हो गए हैं।
गांव घर सूने हुए हैं
वेदना बस झर रही है
दे गहन पीड़ा बहुत
पर भाल ऊंचे हो गए हैं।
आखिरी दीदार भी
जो कर न पाई वीर का
उस बिलखती माँ का दामन
पूछता, ताबूत खाली क्यों गए हैं।
जन्म लेकर जो अभी
आया है माँ की गोद में
पूछता है चढ़ना था जिसपर मुझे
वो उसे कांधे पे लेकर क्यों गए हैं।
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