Thursday, August 26, 2010

बरसते हो जब,
तुम खोजते सौंधी महक
मैं नए चिने पलस्तर सी
नमी खोजती सख्त हो जाने को।


सदियों के पुरुष से
तुम खोजते समर्पण,
मैं नत,
बस तेज़ हवा बह जाने तक।

1 comment:

ओशो रजनीश said...

अच्छी पंक्तिया है ..... ....
http://oshotheone.blogspot.com/