Tuesday, February 15, 2011

ये हवा

राज तेरे मेरे लिए...
कराहती है तभी,
किलकती है कभी
सीली सीली सी
कभी तेज, कभी मद्धम
ये हवा
हर दौर से गुजरती है।

याद के पीत पत्रों को
पलटती,
कईं खुशबू उड़ाती,
अहसासों को कुतरती
कभी
कोई नब्ज़ छेड़ जाती है
ये हवा पर दर्द समझ पाती है।

चलती रही है
सदियो यूँ ही
चुपचाप!
गुदगुदाती, गुनगुनाती,
कभी शोर मचाती हुई
बदलती इस उस को
कभी यूँ ही मेरे संग बदल जाती है।

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