हर पल चलते
समय चक्र में
थम जाते हैं,
हो जाते हैं
अंकित - कुछ पल
उर अंतर में,
बस जाते हैं;
रम जाते हैं,
कर जाते हैं;
भाव विह्वल।
धुल जातीं,
स्मृतियाँ यौवन की;
अमिट रहें पर,
पी संग देखे;
पहले बादल।
हर अवसर पर,
भरा अंक में;
पर अमूल्य,
प्रथम शिशु का;
स्पर्श सुकोमल
कुछ सीले सीले भारी भी
कुछ काँटों की सी
चुभन वाले
रुक जाते हैं
कुछ अनचाहे शुष्क तरल।
इक रोज़ तपाया था नर्म नेह आंच में घट दरक गया है झुलस ताप में. न शिकवा न शिकायत
पर प्रश्न हैं कईं क्यूँ दीखते हैं भरे वृक्ष खोखले कईं? कह कर करें भी क्या? क्या सुनेंगे वो ? घिर गए हैं जो अपने रुआब में?