Sunday, October 7, 2012


नेह की  बारिश बहुत थी
माँ तेरा आंचल नहीं था.

दूर थी माँ जब पुकारा
मुझको तेरा बल नहीं था
मचलती ठुनकती रूठती हंसती
दुलार भरी बाहों में पलती 
दीखती थी सारी सखियाँ 
माँ मुझे संबल नहीं था.

कर दिया तुमने अलग जब 
ममता की यूँ न कुछ कमी थी 
अश्रुओं की थी नमी
स्नेह की पाती कईं थीं 
माँ मेरी यूँ तो कईं थी 
एक तेरा आँचल नहीं था

मजबूर कितनी तुम थी उस दिन
कितने तेरे अश्रु गिरे थे
छोड़ आई थी मुड़े बिन 
मैं समझ पाती हूँ अब 
तिनके सी तब सागर में थी
कश्ती जिसे साहिल नहीं था.

फ़र्ज़ क़र्ज़ अब चुक गए सब 
चुक गया बचपन बेचारा
चुक गए सूखे से कुछ क्षण
आयेंगे न अब दोबारा
सालता है अब तलक 
वो पल जो मेरा कल नहीं था. 

No comments: