Friday, October 2, 2015

यादों के द्वारे
पलड़े नहीं हैं,
चली आती हैं
बेसबब सर उठाए।
कभी नर्म रेशम सी
सहलाएं मन को,
कभी दर्द का
घन दरिया बहायें।
कभी बीच बाज़ार
उड़ती सी खुशबू,
बहा ले जाए
किसी ही जहाँ में।
जगाएं कभी नींद से
बनके सपना,
उठा ले जाएँ
अनोखे जहाँ में।
एहसास मधुर
बीती ज़िन्दगी का,
बना दें सुखद
हर दिन, जो अब आए।
भावना सक्सैना
बस्ती आज क्यूँ उदास
सोचता रहा शज़र।
बादलों को ओढ़ कर
सो गयी चुपचाप
यूँ तो थी देर से
अनमनी दोपहर।
सुन्न मीलों मील फैली
उदास राह गाँव की
ताकती रस्ता उसका
लील जिसे गया शहर।
ताल पर पसरा कुहासा
सूर्य ने भेजी किरण
तरु-पत्रों से छन बिखरी
कण कण पुनः किया उज्जर।
अंगड़ाई ले उठी ख़ुशी
अरसे से जो सिमटी पड़ी
आज फिर से वक़्त पर
भारी हुआ धैर्य का स्वर।