लम्हा लम्हा यूँ
पिघलती ज़िन्दगी
हर सांस में
छोड़ जाते हैं पीछे
हर शै सहेजी हुई
बस यही पल
आज जो है हाथ में
बस सखा वो
जो है हरदम साथ में
जिंदगी के सफहे
हरफ दर हरफ
कहते रहे
जी ले इसे
यही पल ज़िन्दगी
Bhawna Saxena
कुछ राहों में छूट गए
बंधन बरसों के टूट गए
जिसका जितना था बाकी
राही उतना ले दूर हुए।
नेह के धागों में उलझे
नयनों में अश्रु भरे हुए
नियति की डोर बंधे
मन तो बस मजबूर हुए।
है सत्य रुलाती हैं यादें
हर बीते पल को जीते हुए
हम बूझ न पाएं लीला उसकी
जिसमें कठपुतली हम बने हुए।
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