Saturday, May 16, 2020

हौसला रख

माना के पर हैं बंधे हुए

सिमटी हुई परवाज़ है

कुछ मुश्किलें हैं राहों में

बैरी खड़ा बेआवाज़ है।


माना हवा प्रतिकूल है

ठहरा हुआ सब इस घड़ी

मिलने मिलाने पे रोक है

खुली श्वास पर ऐतराज है...
 

माना है मृत्यु लीलती

हर ओर तांडव कर रही

माना स्वयं को निखारने

प्रकृति खेल भीषण रच रही

 

पर हौसला रख तू है बड़ा

जो आज तक यूँ खड़ा हुआ

हों मुश्किलें कितनी विकट

तेरा जुदा अंदाज़ है।


दम साध फिर तू, बढ़ता चल

न आपदा से हो विकल

जो साध लेगा मन अगर

फिर ज़िन्दगी एक साज़ है।


माना के दरिया पीर का

है खींचता बन कर भँवर

वो थाम लेगा हर घड़ी

         जो विश्व का सिरताज है।


-भावना सक्सैना 


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