Monday, March 16, 2020

जन्म

माया के बंध खोल
वांछाओं, स्पृहाओं की
काटकर नाल
खींचते ही एक मुक्त श्वास
होता है जन्म नया...

भोर की पहली किरण से पहले
आँख खुलते ही
अदृश्य सर्वशक्तिमान को
कर निवेदित प्रणाम
आशीष पाकर खिलते ही
होता है जन्म नया...

ज़िंदगी के किसी ज़ख्म से हार
टूटने लगता है जब हौसला
और उठ खड़ी होती हूँ
फिर एक बार
उस पल में
होता है जन्म नया...

संसार में आविर्भाव का दिन
शायद एक घटना भर है
या घटना से है ज़रा ऊपर
विचारता है मन बार-बार
क्या यह बस एक घटना नहीं?
ठीक वैसे ही, जैसे
मृत्यु है, एक घटना!

इन दोनों ही घटनाओं पर
किसी का नहीं अख्तियार
किंतु बीच का बहुत सा जीवन
गुज़र जाता है
पल पल देते जन्म नया।
इन पलों को पहचानना
मुठ्ठी में भींच लेना
देखना, होगा ऐसे हर पल में
हर दिन एक जन्म नया।

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