लोग डर रहे हैं
डर रहे हैं अपनो से भी
कि स्वहित सर्वोपरि है।
सड़क बाजार खाली हैं
बच रहे हैं लोग कहीं जाने से
अपना रहे हैं हर उपाय।
राष्ट्र अपने हितों के लिए
संगरोध में जा रहे हैं।
विश्व की सारी शक्तियाँ केंद्रित हैं
एक सूक्ष्म जंतु से बचाव पर...
सोच रहा है हर कोई
लगा रहा है अपने अनुमान
डरो मत दुनिया के लोगों
कि डर न तो बचाव है
और न ही कोई विकल्प
कि मृत्यु तो तय है
उसी रोज़ से जब जन्मा तन
तुम्हें लगता है असमय
कौन कह सकता है
शायद यही समय हो...
कि धरती को झटकना है
अपना अतिरिक्त भार
प्रकृति को लेनी है करवट
फैशन की तरह
बदलना है अपना लिबास
और प्रकृति भेद नहीं करती
धन से, धर्म से या तन के रंग से
मन की स्वच्छता
आत्मा की शुद्धता का
तब भी हो सकता है कोई खेल
बाकी उसके लिए सब बराबर हैं
इसलिए ठहरो और सांस ले लो
कि जंग कोरोना से नहीं
जंग जीवन से है... आज से नहीं
ये सदियों से है
लुप्त हो जाती हैं जातियां प्रजातियां
और ठहरे रह जाते है कुछ
डरो मत...सतर्क रहो
उससे भी ज़्यादा सहज रहो
प्रकृति चुन ही लेगी
अपने हित को अपने आप
भावना सक्सैना
डर रहे हैं अपनो से भी
कि स्वहित सर्वोपरि है।
सड़क बाजार खाली हैं
बच रहे हैं लोग कहीं जाने से
अपना रहे हैं हर उपाय।
राष्ट्र अपने हितों के लिए
संगरोध में जा रहे हैं।
विश्व की सारी शक्तियाँ केंद्रित हैं
एक सूक्ष्म जंतु से बचाव पर...
सोच रहा है हर कोई
लगा रहा है अपने अनुमान
डरो मत दुनिया के लोगों
कि डर न तो बचाव है
और न ही कोई विकल्प
कि मृत्यु तो तय है
उसी रोज़ से जब जन्मा तन
तुम्हें लगता है असमय
कौन कह सकता है
शायद यही समय हो...
कि धरती को झटकना है
अपना अतिरिक्त भार
प्रकृति को लेनी है करवट
फैशन की तरह
बदलना है अपना लिबास
और प्रकृति भेद नहीं करती
धन से, धर्म से या तन के रंग से
मन की स्वच्छता
आत्मा की शुद्धता का
तब भी हो सकता है कोई खेल
बाकी उसके लिए सब बराबर हैं
इसलिए ठहरो और सांस ले लो
कि जंग कोरोना से नहीं
जंग जीवन से है... आज से नहीं
ये सदियों से है
लुप्त हो जाती हैं जातियां प्रजातियां
और ठहरे रह जाते है कुछ
डरो मत...सतर्क रहो
उससे भी ज़्यादा सहज रहो
प्रकृति चुन ही लेगी
अपने हित को अपने आप
भावना सक्सैना
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