राजभाषा मन की भाषा है
राजभाषा बस नहीं, ये तो मन की भाषा है,
एक डोर में बांधे सबको अभिलाषा है।
ये किरीट भारत का, ये है शान हमारी
इससे ही तो जग में है पहचान हमारी।
इसमें जुड़ती गुजराती, तामिल और मराठी
बाइस मिल पोषित करती हिंदी को प्यारी,
ये अक्षय-वट इसमें समाहित कितनी बोलियां
ये भारत के जन गण मन की आशा है।
ये देश-देश में फैली ले संस्कार हमारे
सींचा इसने कितनों को, कितनों को तराशा।
जुड़ जाता इसमें जब गौरव जन-जन के मन का
बन जाती संस्कृति की ये परिभाषा है।
एकता की उन्नति की तो यही राह है
इसमें सहजता, इसमें सुगमता और
प्रवाह है
ये राष्ट्रप्रेम की जननी है, ये दक्षा है
जिसमें देखें हम खुद को ये वो शीशा है।
राजभाषा बस नहीं, ये तो मन की भाषा है,
एक डोर में बांधे सबको अभिलाषा है।
भावना सक्सैना
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