कोई चला गया
मैं उसे नहीं जानती थी।
उसके जाने ने मगर
एक और कील ठोक दी
जीवन की भंगुरता पर।
कल तक
वह खड़ा बतिया रहा था
ख़्वाब सजा रहा था
मुस्कुरा रहा था
गरिया रहा था
और आज समय यूँ गरिया गया
कि निःशब्द आसपास सब!
बूझे-अबूझे रास्तों पर
जाने-अजाने, चाहे-अनचाहे
किसी के भी चले जाने पर
थोड़ा और सहम जाता है मन…
चलता रहता है मगर जीवन!
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