Wednesday, September 23, 2009

जीवन

कल काटे छाँटे वृक्ष की
नग्न शाख पर उतर आया चाँद
सहलाता हुआ सा
पत्रहीन अकेलेपन को
सींचता चाँदनी से......

तुम जीवन हो
फिर हरे भरे होंगे
कल, कल-कल स्वर
भर देंगे जीवन,
जीवन के आँगन में।

कुछ पत्र पुष्प छंट जाने से
जीवन का सार नहीं चुकता
जीवन मन का वह साहस है
जो कभी कहीं नहीं रुकता

Wednesday, September 16, 2009

दर्पण की वह स्त्री

मैं तो नहीं

बिंदी,सिंदूर,

गले में झूलता मंगलसूत्र।

पत्नी हो गई,

माँ हो गई,

बंध गई रिश्तों में,

कितने, वो मैं तो नहीं।

मैं हवा हूँ

नदी हूँ

चिड़िया हूँ

दादी के आँचल

में झूलती....

अल्हड़ चंचल गुड़िया हूँ




तरु पत्र पर काँपती एक बूँद हूँ


तुम ज्योति पुँज प्रकाश का,


झिलमिल चमका देता जो


सतरंगी किरणें बिखाराता....


में धरती प्यासी सदियों की


तुम सावन का पहला बादल


मोती अपने बिखराकर,


जीवन से भर देता आँचल।



Sunday, September 13, 2009

याद मुझे.......

पिता

वही अंश हूँ तुम्हारा,

आहट पर जिसकी

हर्षाए, मुस्कुराए,

पौरुष हुआ गौरवान्वित

गीत हृदय ने गाए।



रूप प्रत्यक्ष

माँ का जो पाया

अश्रु नयनों में

क्यों भर आए



जननी

मैं रूप थी तुम्हारा

फिर क्यों प्रसन्न न हो पाई

दुख था वह, या भय था

जिससे भर आँचल सिमट गया।


आज सफलता देख मेरी

जब हर्षाते हो

मन में फिर भी

यह रहता है.....

अब भी.....क्या अब भी

पुत्र ही चाहते हो

आशीष रहा

मुझ पर जो सदा

जो प्रेम तुम्हारा

बना रहा

हर पथ पर

संबल तुमने दिया

वह याद सभी कुछ है

पर भूले नहीं

कभी फिर भी......

आँख के तेरी

वे आँसू।

Friday, September 11, 2009

अब छत पर बिस्तर नहीं लगते।

बरसों बीत गए
चाँदनी में नहाए हुए
अब तो छत पर
बिस्तर नहीं लगते।

रिमोट, प्लेस्टेशन...
हाथ हुए जबसे
दादा की कहानियाँ
भटक गईं रस्ते।

साँझ को मिलता नहीं
कोई चौबारों पर
आप ही आप
कट गए रस्ते।

बैठे हैं चुपचाप एयरकंडिशनर में
भूल गए गर्मी की मस्ती
और खेल में काटे
दिन हँसते हँसते।

वो गिट्टियाँ....
अक्कड़-बक्कड़
साँप-सीढ़ी, कैरम,
कँचों के मासूम से खेल।

बेकार कपड़ों से बनी गुड़ियाँ
मरी परंपराओं की तरह
बस मिलती हैं
म्यूजियम में।

दादी भी हाइटैक......
ला देती हैं बार्बी,

दादा के खिलौने
रिमोट से चलते।

हाल दिल के
दिलों में रहते हैं
औपचारिकताओं के हैं
नाते-रिश्ते।

आधी रात तक
बतियाता नहीं कोई
क्योंकि छत पर तो
अब बिस्तर नहीं लगते।

अभिव्यक्ति

शब्द नहीं हैं
अभिव्यक्ति को,
संध्या के रंगों की
चिड़ियों के स्वर की,
मंद बयार की।
और उन सब में होने की।
उस अपूर्व अनुभव की
जीवन की,
साँसों की अभिव्यक्ति
संभव भी नहीं।
उसे बस जीना होगा,
स्वयं ही जीना होगा।

Tuesday, September 1, 2009

वह तुम्हारा है

क्यों चाहते हो
उसमें सब खूबियाँ
एक अच्छे इंसान की,
सुघड़ आदतें,
व्यवस्थित जीवन।
ताकि .....
उसे मेडल, ट्रॉफी की तरह
आगे कर सको
और कह सको-
देखो मेरा है
और उसे मिली
प्रशंसा को
अपनी टोपी में लगा सको
एक खूबसूरत पंख की तरह।

जीने दो उसे
उसका जीवन
अल्हड़,
बेपरवाह
संकोचहीन।

उसके अपने अनुभव
ढाल देंगे उसे
और तप कर बन जाएगा कुंदन।

जीने दो उसे
क्योंकि.....
वह तुम्हारा है,
बस तुम्हारा।