सृजन
Friday, September 11, 2009
अभिव्यक्ति
शब्द नहीं हैं
अभिव्यक्ति को,
संध्या के रंगों की
चिड़ियों के स्वर की,
मंद बयार की।
और उन सब में होने की।
उस अपूर्व अनुभव की
जीवन की,
साँसों की अभिव्यक्ति
संभव भी नहीं।
उसे बस जीना होगा,
स्वयं ही जीना होगा।
1 comment:
gyaneshwaari singh
said...
haa khud ji jeena hoga us anubhav ko
achi soch
17 September, 2009
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haa khud ji jeena hoga us anubhav ko
achi soch
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