Wednesday, September 23, 2009

जीवन

कल काटे छाँटे वृक्ष की
नग्न शाख पर उतर आया चाँद
सहलाता हुआ सा
पत्रहीन अकेलेपन को
सींचता चाँदनी से......

तुम जीवन हो
फिर हरे भरे होंगे
कल, कल-कल स्वर
भर देंगे जीवन,
जीवन के आँगन में।

कुछ पत्र पुष्प छंट जाने से
जीवन का सार नहीं चुकता
जीवन मन का वह साहस है
जो कभी कहीं नहीं रुकता

2 comments:

Amit K Sagar said...

बहुत-बहुत उम्दा रचना. आपकी रचनात्मका और रचना की प्रष्टभूमि और जीवन की एक सकारात्मकता वाह...आपकी रचनाएं सदैव पढ़ना चाहूँगा...बहुत ही उम्दा लिखा है. जारी रहें.
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Till 30-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!

श्रद्धा जैन said...

bahut sakartmak soch....... kuch ptte jhad jaaye to jeevan nahi rukta