इल्तिजा मौत तुझसे है इतनी,
देके दस्तक मेरे दर पे आना।
जिंदगी ये गुज़ारिश है तुझसे,
सुनके दस्तक वहाँ ले जाना,
कोई साया भी हो ना जहाँ पर,
फिर मिलकर मुझे तुम सुलाना।
न डाले कफन कोई ऐसा...
पीछे जिसका सुनाएं वो ताना,
कौन आँसू बहाएगा मुझपर,
है खुदगर्ज़ ये तो जमाना
भीड़ में से अँगुली पकड़ कर
तन्हाइयों में ले जाना
और गोद में रखकर मेरा सर,
नींद अंतिम मुझे तुम सुलाना।
1 comment:
मौत से भी इल्तिजा .......वहा कोई इल्तिजा नहीं सुनी जायेगी ........"भीड़ में से अँगुली पकड़ कर तन्हाइयों में ले जाना".........अच्छी लगी ये पंक्तिया ..!
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