Thursday, April 26, 2018

1
एक उदासी सी बसा करती है आइनों में 
उनकी आँखों में ही अक्स खिला करता है

2
जिस सुकून और नींद की तलाश है
जब होगी न होश होगा न करार ही...
3
औरों पे जो अक्सर इल्ज़ाम लगाया करते हैं
आइनों से क्यों मुंह अपने छिपाया करते हैं?
4
भाव शब्दों से नहीं आंखों से बयाँ होते देखे
है करिश्मा के आज पत्थर भी पनपते देखे।
5
बूझ पाए जिसे कोई, वह सवाल नहीं हूँ
खुद को ही समझने में उम्र गुज़ारी है...
तिर आई है हवा में फिर से
मीठी खुशबू शहतूतों की
पिघली बर्फ, दे रही दस्तक
मन की ऋतु के परिवर्तन की।
खुशियाँ मना रहा है कोई
मौसम के करवट लेने की।
ठान लिया मन ने जब कुछ
गति तो बदलेगी जीवन की।
b.s.

हौसला नदी का

पार साल से नदी
कुछ खारी हो गयी है
थकने लगी थी बीहड़ में
पत्थरों से उलझते
सिंधु से लेकर अपना जल
अब उलटी बह रही है,
जब तक मीठी थी
हर मोड़ पे कटती रही
अब खारी हुई तो
लबालब शांत बह रही है,
हौसला चाहिए
मिठास खोने को भी
ज़रा टेढ़ा सा मुस्कुरा
घाटियों से कह रही है...
भावना सक्सैना