पार साल से नदी
कुछ खारी हो गयी है
थकने लगी थी बीहड़ में
पत्थरों से उलझते
सिंधु से लेकर अपना जल
अब उलटी बह रही है,
जब तक मीठी थी
हर मोड़ पे कटती रही
अब खारी हुई तो
लबालब शांत बह रही है,
हौसला चाहिए
मिठास खोने को भी
ज़रा टेढ़ा सा मुस्कुरा
घाटियों से कह रही है...
कुछ खारी हो गयी है
थकने लगी थी बीहड़ में
पत्थरों से उलझते
सिंधु से लेकर अपना जल
अब उलटी बह रही है,
जब तक मीठी थी
हर मोड़ पे कटती रही
अब खारी हुई तो
लबालब शांत बह रही है,
हौसला चाहिए
मिठास खोने को भी
ज़रा टेढ़ा सा मुस्कुरा
घाटियों से कह रही है...
भावना सक्सैना
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