1
एक उदासी सी बसा करती है आइनों में उनकी आँखों में ही अक्स खिला करता है
2
जिस सुकून और नींद की तलाश है
जब होगी न होश होगा न करार ही...
3
औरों पे जो अक्सर इल्ज़ाम लगाया करते हैं
आइनों से क्यों मुंह अपने छिपाया करते हैं?
4
भाव शब्दों से नहीं आंखों से बयाँ होते देखे
है करिश्मा के आज पत्थर भी पनपते देखे।
5
बूझ पाए जिसे कोई, वह सवाल नहीं हूँ
खुद को ही समझने में उम्र गुज़ारी है...
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