मन की बेड़ी में जकड़े
अपने अपने द्वीपों में
युगों युगों से खड़े हुए
अनंतकाल के बंदी हम।
कोई कहानी कोई निशानी
जब तब आंखों में मोती
कारा तोड़ निकल आएं हैं
यह भी तो बस एक भरम।
कितनी राहों से गुजरा
कहाँ कहाँ भटका ये मन
बीहड़ सागर नापे सारे
छोडें नहीं जन्म के करम।
मुझको मेरा, तुझको तेरा
बांधे जन्मों जन्मों से
कोई राह है ऐसी भी
छूटें जग के भवबंधन।
अपने अपने द्वीपों में
युगों युगों से खड़े हुए
अनंतकाल के बंदी हम।
कोई कहानी कोई निशानी
जब तब आंखों में मोती
कारा तोड़ निकल आएं हैं
यह भी तो बस एक भरम।
कितनी राहों से गुजरा
कहाँ कहाँ भटका ये मन
बीहड़ सागर नापे सारे
छोडें नहीं जन्म के करम।
मुझको मेरा, तुझको तेरा
बांधे जन्मों जन्मों से
कोई राह है ऐसी भी
छूटें जग के भवबंधन।
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