दरक गए संबंध कितने
आस में मनुहारों की
प्रेम को कब चाह है
बाज़ार के उपहारों की।
दो बोल से पिघला करे
हिम जो जमा सदियों रही
बह चलें एक स्पर्श में
सारी व्यथाएं अनकही।
भावना सक्सैना
आस में मनुहारों की
प्रेम को कब चाह है
बाज़ार के उपहारों की।
दो बोल से पिघला करे
हिम जो जमा सदियों रही
बह चलें एक स्पर्श में
सारी व्यथाएं अनकही।
भावना सक्सैना
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