कितना सुखी होना है
कछुआ होना
अपने घेरे में
अपने दायरे में
जड़ता ओढ़
अडिग अचल
निःस्पृह।
पाना वो तीव्र दृष्टि
जो चीर अंधेरे
पराबैंगनी किरणों में
रंग बूझ पाए
दुनियावी फितरतों के
छिपकर कवच में अपने
कह सके
मैं जब हूँ, तभी हूँ
अपने मन से
अपने लिए।
भावना सक्सैना
कछुआ होना
अपने घेरे में
अपने दायरे में
जड़ता ओढ़
अडिग अचल
निःस्पृह।
पाना वो तीव्र दृष्टि
जो चीर अंधेरे
पराबैंगनी किरणों में
रंग बूझ पाए
दुनियावी फितरतों के
छिपकर कवच में अपने
कह सके
मैं जब हूँ, तभी हूँ
अपने मन से
अपने लिए।
भावना सक्सैना
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