Tuesday, September 1, 2009

वह तुम्हारा है

क्यों चाहते हो
उसमें सब खूबियाँ
एक अच्छे इंसान की,
सुघड़ आदतें,
व्यवस्थित जीवन।
ताकि .....
उसे मेडल, ट्रॉफी की तरह
आगे कर सको
और कह सको-
देखो मेरा है
और उसे मिली
प्रशंसा को
अपनी टोपी में लगा सको
एक खूबसूरत पंख की तरह।

जीने दो उसे
उसका जीवन
अल्हड़,
बेपरवाह
संकोचहीन।

उसके अपने अनुभव
ढाल देंगे उसे
और तप कर बन जाएगा कुंदन।

जीने दो उसे
क्योंकि.....
वह तुम्हारा है,
बस तुम्हारा।

9 comments:

संदीप said...

कविता के भाव अच्‍छे लगे, लेकिन अंतिम पंक्ति पूरी कविता की भावना से मेल नहीं खा रही है...

श्यामल सुमन said...

खूबसूरत भाव की रचना। सोचने का यह नजरिया पसन्द आया।

Yogesh Verma Swapn said...

sunder.
ब्लॉग जगत में स्वागत है.

swapnyogeshverma.blogspot.com
swapnyogesh.blogspot.com

Chandan Kumar Jha said...

रचना अच्छी लगी.

चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.

गुलमोहर का फूल

Unknown said...

dear dost bahut khoob likha hai...likhte rahen or ha mere blog par kab padhar rahe ho....?

Jai Ho Mangalmay Ho

Wondering thoughts.. said...

"उसके अपने अनुभव
ढाल देंगे उसे
और तप कर बन जाएगा कुंदन।"

लोग यही बात क्यों नहीं समझते है, आजकल माता पिता यही चाहते है की उनका लाडली/लाडला घर से ही सम्पूर्ण बन कर निकले, पर असलियत में वो जिसे सम्पूर्णता मानते है, वो सिर्फ खोक्लापन होता है, खैर जाने दीजिये,

साधारण से सब्दो को बोहोत ही सुन्दर तरह पिरोया है आपने, बहुत अच्छी लगी,

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

wah jee wah! narayan narayan

संजय भास्‍कर said...

रचना अच्छी लगी.

चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.

http://sanjay.bhaskar.blogspot.com

Bhawna said...

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।
मेरे भावों को सराहा, आभारी हूँ। आज की अँधी दौड़ में थोड़ा ठहर कर सोचना ही होगा।