क्षितिज के आगे,
जहाँ और भी हैं
समझो मगर,
मेरी सीमा यही है।
उस पार सरिता के,
फूलों की वादी
सरिता मगर,
सागर से बड़ी है।
हाथ बढ़ा लें ,
तो पा जाएं तारे,
छूटेंगे उससे
रिश्ते तो सारे
रह जाएँगे
सब साथी हमारे
जो भी है मेरा,
सब बस यही है,
उस पार दुनिया
मेरी नहीं है।
1 comment:
रचना मेरे अहसासों में डूबते हुए किसी मर्म से जा टकराई हो जैसे...
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जारी रहें. शुभकामनाएं.
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