Tuesday, October 20, 2009

सीमा


क्षितिज के आगे,

जहाँ और भी हैं

समझो मगर,

मेरी सीमा यही है।

उस पार सरिता के,

फूलों की वादी

सरिता मगर,

सागर से बड़ी है।

हाथ बढ़ा लें ,

तो पा जाएं तारे,

छूटेंगे उससे

रिश्ते तो सारे

रह जाएँगे

सब साथी हमारे

जो भी है मेरा,

सब बस यही है,

उस पार दुनिया

मेरी नहीं है।

1 comment:

Amit K Sagar said...

रचना मेरे अहसासों में डूबते हुए किसी मर्म से जा टकराई हो जैसे...
-
जारी रहें. शुभकामनाएं.
---

तीन कहानियां: "friends with benefits" रिश्ते के अनुभव- बहस-७ [उल्टा तीर]