1.
नारी धरती
सहेजे वक्षस्थल
अकथ नमी।
2.
नर्म पँखुरी
पल में मुरझाए
मन नारी का।
3.
शुचि की द्युति
शतदल कमल
कांतिविहीन।
4.
पीत पर्ण सी।
तितर बितर हो
स्त्री की आकांक्षा।
5.
बहती रही
पीयूष स्रोत सम
विषम में भी।
6.
धैर्य प्रतिमा
सह हर आघात
और निखरी।
7.
नारी कुशा सी
रौंदी जाती फिर भी
मस्तक ऊँचा।
8.
सोना बनता
तप कर कुंदन
ज्यों नारी मन।
9.
स्मृति मधुर
कभी करे विकल
हर्षाए कभी।
10
याद की बूंदें
नयनों की सहेली
बसें कोर पर।
11
बैरन यादें
दौड़ी आएं आँगन
देख अकेली।
12
यादें जो खिलें
हो मन सुरभित
फैले सुवास।
13
याद डाकिन
दबे पाँव आती हैं
छीने सुकून।
14
मन आँगन
रोपा एक बिरवा
यादों के फूल।
15
कटी पतंग
लहरा आएं यादें
डोर के बिन।
16
मेघों का स्वर
सुन धरा आकुल
छोड़ो फुहार।
17
कंटक वन
बरसात की धूप
बींध डालती।
18
मोह बन्धन
अद्भुत अपूर्व है
पाँव की बेड़ी।
19.
सौम्य सुंदर
गरिमामयी छवि
नमन तुझे।
20.
बिखरा देती स्त्री नर्म धूप
हर ओर उजास
स्त्री नर्म धूप।
हरिगन्धा मार्च 2023 महिला विशेषांक में प्रकाशित
No comments:
Post a Comment