Thursday, March 16, 2023

 शहर की व्यस्त 

सड़क के किनारे लगे 

उदास से लाल डिब्बे को देख 

मन हुआ एक चिट्ठी लिखी जाए।

कि तकनीक के इस दौर में

अरसा हुआ किसी से खतो खतावत हुए

भावनाओं में डूबे अल्फ़ाज़ों की नमी उतरी नहीं है बरसों से आंख में

ठहरा नहीं है मौसम शब्दों में कहीं


फिर ख़्याल... कि 

किसको लिखें भाव इस मन के

कौन ठहर कर गहेगा शब्दों को

आत्मसात करेगा उनमें छिपा वेग

उनमें छिपे ठहराव

तो सोचा...

खुद से खुद का ही है नाता अटूट

खुद से कहनी भी हैं अरसे से बातें कईं

एक लड़की गुम हो गयी है भीतर कहीं

वो अक्सर

हाँ अक्सर जो दिखती है

वो तो है ही नहीं...

तो लिखना है डूब कर

एक रोज़ खत खुद को ही

ये जानते हुए भी 

कि मन के हिस्से

लिखना आसान नहीं।

तुम भी किसी रोज़

ठहर कर किसी मोड़ पर

लिखना खुद को बातें मन की अनकही।


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