Sunday, March 11, 2018

रंजोगम हैं हज़ार सीने में
लब तो फिर भी ये मुस्कुराते हैं।

ख्वाब आते तो हैं नज़र में मगर
भीग आंसू से फिसल जाते हैं ।

पाँव उनका पड़ा था दिल पे मगर
सोच कर पत्ता निकल जाते हैं।

ख्वाहिशें होती हैं नाज़ुक सी बड़ी
अपनी ही खुद न जान पाते हैं।

वो जो कल हाथ छोड़ते ही न थे
आज पहचान भी न पाते हैं।

नूर अच्छाई का चमकता है जब
आईने आप ही टूट जाते हैं।

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