रंजोगम हैं हज़ार सीने में
लब तो फिर भी ये मुस्कुराते हैं।
ख्वाब आते तो हैं नज़र में मगर
भीग आंसू से फिसल जाते हैं ।
पाँव उनका पड़ा था दिल पे मगर
सोच कर पत्ता निकल जाते हैं।
ख्वाहिशें होती हैं नाज़ुक सी बड़ी
अपनी ही खुद न जान पाते हैं।
वो जो कल हाथ छोड़ते ही न थे
आज पहचान भी न पाते हैं।
नूर अच्छाई का चमकता है जब
आईने आप ही टूट जाते हैं।
No comments:
Post a Comment