गीली मिटटी
अब जल्दी सूख जाती है
गूंथने में ही कुछ कमी होगी
स्निग्धता छुअन में न हो
या हवा में कम नमी होगी।
पकने से पहले पड़ें दरारें जो
पकने पर और फ़ैल जाती हैं
भीतर की रिसन और टूटन
खोखला तन मन करके जाती है।
दो बूँद तरलता के बढ़ा
क्यों न और इसको गूंथें ज़रा
बीन दें कचरा सभी ज़माने का
जोड़ स्नेह के अणु कण
नम हाथों से छू कर फिर फिर
ऐसे गूंथें कि सम हो भीतर बाहर
हो नरम कि सहज ही ढले
ताप समय का जब पकाए इसे
पक के चमके ये फिर सदा के लिए।
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