Thursday, March 15, 2018

गीली मिटटी 
अब जल्दी सूख जाती है
गूंथने में ही कुछ कमी होगी
स्निग्धता छुअन में न हो
या हवा में कम नमी होगी।
पकने से पहले पड़ें दरारें जो
पकने पर और फ़ैल जाती हैं
भीतर की रिसन और टूटन
खोखला तन मन करके जाती है।
 
दो बूँद तरलता के बढ़ा
क्यों न और इसको गूंथें ज़रा
बीन दें कचरा सभी ज़माने का
जोड़ स्नेह के अणु कण
नम हाथों से छू कर फिर फिर
ऐसे गूंथें कि सम हो भीतर बाहर
हो नरम कि सहज ही ढले
ताप समय का जब पकाए इसे
पक के चमके ये फिर सदा के लिए।

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