इस जहां से उस जहां तक
सिर्फ मेरा, है तो क्या?
हवा, पानी, सूर्य, बादल
भाई-बन्धु, रिश्ते-नाते
अपनेपन के गीत गाते,
नेह के सौदे जो सारे
कट के खाँचों में अटे हैं।
ईश पर अधिकार सबका
वेदों की ऋचाएं सबकी
सबकी सरगम,गीत सबके
धरा पर सब सम डटे हैं।
बारिशों का जल धरा का
पुष्प का मकरंद सब लें
सब पे छाए ऋतु बसंत
सबमें सातों रंग रमे हैं।
अपनी बस अनूभूतियाँ
अपनी बस एक आस्था
अपने मेरे शब्द जिनसे
मौन के दानव छंटे हैं।
अपनी भक्ति अपनी शक्ति
परम से अनुराग अपना
अपना है वो नाम हरि का
बोल जो निस-दिन रटे हैं।
No comments:
Post a Comment