Wednesday, March 21, 2018

विशाल पर्वत सा 
अजेय, दुर्गम
ढक लेता है
सूर्य की हर किरण
तुम्हारा मौन।
घने काले जंगल में
उग आती हैं
सर्पलताएँ विषैली
अजगर सा भय
सब लीलने को तैयार।
जरा मुस्कुराते ही तुम्हारे
पर्वत से फूट पड़ते हैं
झरने असंख्य
जिनमें नृत्य करती
चपल रश्मियाँ
बिखेर देती हैं
इंद्रधनुष के रंगों की
आभा अपरिमित
और इन्हें सहेजने में
कई मौसम निखर जाते हैं।

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