खुशी साझा होती है, गम सबके अपने, दर्द की इंतहा है... सब अपने अपने दुख दर्द सहला रहे हैं। नया कुछ भी नहीं, सब होता रहता है। लेकिन आज यह अनूभूति हो रही है कि मेरा देश जैसे किसी ऑटोइम्मयून रोग की गिरफ्त में है जहां हर कोशिका दूसरी को मार रही है। देश के दुश्मन बाहर काम हैं भीतर ज़्यादा। बहुत कष्ट देने वाली वास्तविकता है यह...
जब भी जवान शहीद होते हैं आसपास की चीज़ों की निरर्थकता बढ़ जाती है...
जब भी जवान शहीद होते हैं आसपास की चीज़ों की निरर्थकता बढ़ जाती है...
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