Wednesday, June 3, 2020

हौसले की तदबीरें

आसमान साफ है
और उस में स्पष्ट है
भविष्य पर लगा
बड़ा काला प्रश्नचिह्न
जिसके पार फैला है
अंतहीन कोहरा।
टेलीविजन भरा हुआ है
मौत, उदासी, भूख और
बेबसी की तस्वीरों से
बेइंतेहा दुखों और
दूर तलक पसरी उदासी की
घनघोर घटाओं के बावजूद
मैं नहीं लिखूंगी
आँसुओं के गीत।

मैं नहीं कहूंगी कि
खतम हो चली है इंसानियत
क्योंकि जो बचा है
वही इंसानियत है
वही करुणा है
और वही है प्रेम।
यकीन मानो न होता
तो कुछ बचा ही न होता।

मन होता तो है उद्वेलित
तब कस लेती हूँ जिरह बख्तर
मजबूत करती हूँ दुर्ग मन का
कि अनचीन्हा भेद न पाए
होते ही चाक-चौबंद
सहसा भीतर से कह उठता कोई
सुनो... यहाँ रुकना मत
तुम लाँघ जाना
इस मीलोमील पसरे
कोहरे भरे आसमान को
उस आशा के पंख पर तिर
जिसे रखता है मन सहेज
घोर अंधेरों में महफूज़
कि अभी लिखनी हैं
हिम्मत और आशा की तदबीरें
लिखनी हैं पातियां
उन योद्धाओं के नाम
जो डटे हैं छोड़ अपने घर बार
तुम जो ठहरे हो
उन्हें बल मिलता है
कि ज़िन्दगी दरिया है
जो बहता रहता है।
कि हौसले की नाव पर
सवेरा रहता है।

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