Wednesday, June 3, 2020

बची रहेगी धरा

बची रहेगी धरा

मैं और तुम
जब बैठे हैं सुरक्षित घरों में
कुछ लोग जूझ रहे है
विकट परिस्थितियों में
वो थामे हैं मानवता,
स्वार्थ को कर किनारे ज़रा
बस उन्हीं के जीवट से बची रहेगी ये धरा

बिखरते तिनकों को
समेट सहला रहे हैं जो
उनकी बातों में जादू है झोले में दवा
वक्त कैसा भी आए बुरा
उनसे टकरा कर जाएगा बिखर
वो रोपते रहेंगे विश्वास
और बची रहेगी ये धरा।

कुछ बीज रोपे थे
नरम हथेलियों ने मिट्टी थपका
एक रोज़ आँधियां जब आतुर हो
गिराने लगेंगी सूखे दरख़्त पुराने
नए पौधे फैलाकर जड़ें अपनी
बांध लेंगे मृदा
उन मासूम हथेलियों की
ऊष्मा से बची रहेगी ये धरा।

राजनीति एक दूसरे को गिराने जब
खोज रही होगी तुरुप का इक्का
बुद्धिजीवी जब गढ़ रहे होंगे सिद्धांत
देश के किसी कोने में चुपके से
देकर लहू अपनी शिराओं से
कोई सैयद बचा लेगा एक सुलोचना
जिसे सुन हर कोई उठेगा मुस्कुरा
बस इसी मुस्कान से बची रहेगी ये धरा।

हज़ार नफरतों के बीच
रहेंगे कुछ हाथ
जो बिन पूछे धर्म और जात
बांटते रहेंगे प्रेम
और जीती रहेगी उम्मीद
एक कतरा प्रेम मुट्ठी में भींच
उसी कतरे में श्वास ले
जीत जाएगी वक्त से और जीती रहेगी धरा।

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