Wednesday, June 3, 2020

घर खुश है

दीवारों के रंग खिल रहे हैं
वे नेहभरी नज़रों में नहाई हैं
घर खुश है कि अब तक
उसे संवारा जाता था
अब उसमें रहा जा रहा है।

गमलों के पौधे मुस्कुरा उठे हैं
उन्हें दिल से पुकारा जा रहा है
रसोई में उठ रही, सौंधी महक
आनंदित हो  रहा है घर
उसमें जीवन निखारा जा रहा है।

कहीं किलकारियां हैं
अनहद नाद कहीं
चहकते, मचलते बालकों की
बातों से, गीतों से घर खुश है,
हर कोना गुनगुना रहा है।

सज रही हैं दीवारें इस मौसम
रंग कागज़ पर उतार कहीं
दिन संवारा जा रहा है
घर खुश है उसमें
इंद्रधनुष उतारा जा रहा है।

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