Wednesday, June 3, 2020

ताकि सनद रहे

बड़ी कॉलोनियों के सुरक्षित भवनों में
भरे पेट समाचारों की जुगाली करते ज्ञानी
नहीं समझ पाएंगे क्यों जुट जाती है भीड़
आनंद विहार और बांद्रा पर
सर पर गठरी-पोटली  उठाए
डामर पर चलते सूजे हुए पांवों का दर्द
और मन में धंसी फांस की चुभन
उन्हें भेद नहीं पाएगी
वे गरियाएँगे उनकी बेअकली पर
पाठ पढ़ाएंगे दूरी और मास्क के
बताएंगे मुफ्त राशन और भोजन की स्कीमें...

इन सबसे परे
चलते रहेंगे कुछ पाँव, कि
उन्हें नहीं आती सियासत
वे बस घर की सोचते हैं
और चल पड़ते हैं
अपने घर सर पर उठाए
उन्हें डर बीमारी से नहीं
भूख की भी आदत है उन्हें
वे डरते नहीं भूख से
डर है बड़े शहर में लावारिस मौत का
हर तरफ सुरसा सी मुँह फैलाए
उसमें समा जाने के पहले
वो देखना चाहते हैं
अपने दुधमुंहे का मुँह
छूना चाहते हैं उस दीवार को
जिसके लिए दो महीने पहले ही
 किया था मनी आर्डर
वो जानते हैं कि मृत्यु रुकती नहीं
लेकिन मरना चाहते हैं अपनों के बीच
ताकि सनद रहे नातेदारों को कि
दुनिया से कूच कर गए हैं।

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